क्या सिस्टम को जगाने के लिए हर बार अनहोनी जरूरी ?
अवधी खबर संवाददाता
अम्बेडकर नगर।
एक ओर जहां सरकारें बच्चों के पोषण, शिक्षा और सुरक्षित भविष्य के नाम पर करोड़ों रुपये की योजनाएं चलाती हैं, वहीं ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। कटेहरी विकासखंड के अंतर्गत भियुरा गाँव में निर्माणाधीन आंगनबाड़ी केंद्र भ्रष्टाचार और लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण बन गया है।
गुप्त पड़ताल में खुली पोल,कैमरे पर कबूला गया सच
मीडिया की गहन छानबीन और स्ट्रिंग ऑपरेशन ने इस मामले की परत-दर-परत सच्चाई उजागर कर दी है। निर्माण स्थल पर मौजूद मजदूर ने खुद कैमरे के सामने कबूल किया कि “मौरंग की मात्रा बेहद कम है और बालू की मात्रा ज़रूरत से ज़्यादा” यह बयान अपने आप में निर्माण कार्य की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
स्पष्ट है कि यह कार्य मानकों के विपरीत हो रहा है, और बच्चों के लिए बनाए जा रहे इस केंद्र की नींव में ही अनियमितता की दरारें पड़ चुकी हैं।
मीडिया रिपोर्ट के बाद भी सिस्टम बना ‘मौन दर्शक’
इस खबर को मीडिया द्वारा प्रमुखता से प्रकाशित किए जाने के बाद, ज़िम्मेदार अधिकारी सक्रिय जरूर हुए मगर सिर्फ औपचारिकता निभाने के लिए। निरीक्षण के नाम पर कागज़ी खानापूर्ति की गई और परिणाम वही पुराना “कोई अनियमितता नहीं मिली।”
जब सीडीपीओ कटेहरी स्वर्णलता सिंह से इस बाबत जानकारी ली गई तो उन्होंने कहा कि “जांच कर रिपोर्ट भेज दी गई है, आप चाहें तो वीडियो से जानकारी ले सकते हैं।”
वहीं वीडीओ कटेहरी का जवाब और भी हैरान करने वाला रहा “जांच में कुछ नहीं मिला, निर्माण कार्य सही पाया गया।”
सवालों के घेरे में जिम्मेदारों की मंशा
यहाँ सवाल यह नहीं है कि अनियमितता मिली या नहीं,सवाल यह है कि जब कैमरे पर मजदूर खुद स्वीकार कर रहा है कि सामग्री में गड़बड़ी है, तो उसे नज़रअंदाज़ कैसे किया जा सकता है?
क्या जांच सिर्फ दिखावे के लिए की गई?
क्या ज़िम्मेदार अधिकारी किसी दबाव में हैं या फिर खुद भी इस खेल में साझेदार है।
बच्चों का भविष्य या भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती योजनाएं?
एक तरफ सरकारें “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”, “सुपोषण अभियान” जैसी योजनाओं के ज़रिए बच्चों को बेहतर भविष्य देने का दावा करती हैं, दूसरी ओर जमीनी स्तर पर इन योजनाओं की जड़ें भ्रष्टाचार से सड़ चुकी हैं।
क्या यह देश के नौनिहालों के भविष्य से सीधा धोखा नहीं है?कब बजेगा सिस्टम का अलार्म? कब रुकेगा लापरवाही का सिलसिला?
हर बार क्या किसी हादसे का इंतज़ार किया जाएगा?
क्या कोई अनहोनी बाद ही व्यवस्था जागती है?
या फिर यह सब सिर्फ फाइलों में चलता रहेगा, जहां “सब ठीक है” की रिपोर्टें असली सच्चाई को ढकती रहेंगी?जब बच्चों के लिए बने भवनों की नींव में ही मिलावट होगी, तो भविष्य कैसे सुरक्षित होगा?क्या ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, जो जानबूझकर आंखें मूंदे बैठे हैं?





