जनपद बागपत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में शुमार है दादी महाराज जी का मंदिर

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बागपत, उत्तर प्रदेश। विवेक जैन। बागपत की रामायणकालीन और महाभारतकालीन ऐतिहासिक धरा पर समय-समय पर कई आलौकिक शक्तियों से सम्पन्न मंदिरों का समय-समय पर निर्माण हुआ। इन्ही मंदिरों में फुलैरा गांव का हरनन्दी माता जी का मंदिर विशेष महत्व रखता है। यह मंदिर जनपद बागपत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में शुमार है। इस मंदिर को दादी महाराज जी के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के इतिहास के बारे में हमारे संवाददाता विपुल जैन को मंदिर के प्रमुख सेवादार राजगिरी जी महाराज ने बताया कि औरंगजेब के शासनकाल में हिन्दुओं को अपने भगवानों और देवी-देवताओं की पूजा-पाठ करने के लिए अनेकों कष्टों का सामना करना पड़ता था।

उसी काल में फुलैरा गांव में भगवान शिव के परम भक्त बम्बोला के परिवार में हरनन्दी नामक कन्या का जन्म हुआ। हरनन्दी की बचपन से धार्मिक कार्यो में बड़ी रूचि थी। औरंगजेब के शासन में बम्बोला अपने परिवार के साथ जंगल में भगवान शिव की पूजा करने के लिए आते थे उन्ही के साथ हरनन्दी भी आया करती थी। बताया जाता है कि हरनन्दी ने युवा अवस्था तक लगभग समस्त धार्मिक ग्रंथो का अध्ययन कर लिया था और उसने भगवान शिव को ही अपना सबकुछ मान लिया था। भगवान शिव की पूजा करने से हरनन्दी को अनेकों सिद्धियों की प्राप्ती हो गयी थी जिसका उपयोग वह लोगों की बीमारियों को दूर करने आदि के लिए किया करती थी। औरंगजेब शासन में लड़की के साथ कोई अप्रिय दुर्घटना ना हो इसलिये हरनन्दी के युवा होते ही उनकी मर्जी के बिना उनकी शादी बुलंदशहर के एक गांव में कर दी गयी और फेरे फेरकर उसको चार कहारों वाली डोली में उनके सुसराल वाले लेकर चल दिये। बुलंदशहर पहुॅंचने पर जब मुंह दिखायी के लिए डोली का पर्दा हटाया गया तो हरनन्दी डोली में नही थी। हरनन्दी के सुसराल वाले फुलैरा पहुॅंचे और बम्बोला को इस घटना से अवगत कराया। बम्बोला हरनन्दी के सुसराल वालों को लेकर जंगल में उस स्थान की और चल दिये जहां पर हरनन्दी भगवान शिव की पूजा किया करती थी।

जंगल में हलचल होने पर हरनन्दी ने अपने तप से पता लगा लिया कि घर के लोग उसको ले जाने के लिए आ रहे है। उसने अपनी सिद्धि से धरती माता का आहवान किया और धरती माता से कहा कि वह उनको अपनी गोद में ले ले। तुरंत धरती फटी और हरनन्दी उसमें समा गयी। इस घटना को दूर से उनके परिवार वालों और ससुराल वालों ने अपनी आंखों से देखा। लेकिन वे कुछ नही कर सके। वे लोग तुरंत घरों से फावड़ा, खुदाल आदि लेकर आये और जिस स्थान पर हरनन्दी समायी थी उस पूरे स्थान को कई सौ मीटर खोद डाला लेकिन उनको हरनन्दी की खड़ाऊ के अलावा कुछ नही मिला। जिस स्थान पर हरनन्दी समायी भी उस स्थान पर उनका मंदिर बना दिया गया जिसमें उनकी खड़ाऊ स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है।

मान्यता है कि हरनन्दी आज भी धरती के नीचे भगवान की भक्ति में लीन रहती है। जो भक्त सच्चे मन से हरनन्दी माता के दरबार में आता है उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है। इस स्थान पर मिट्टी खोदने से जो तालाब बन गया था उसमें नहाने से लोगों के चर्म रोग दूर होते है। हर वर्ष इस स्थान के लाखों लोग दर्शन करते है। हरनन्दी माता के इस मंदिर में उनके जन्म दिन और भूसमाधि के दिन को मुख्य पर्व के रूप में मनाया जाता है जिसमें हजारों लोग माता के दरबार में हाजरी लगाते है।


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