पिता हैं तो सारा जहान अपना है ! पिता की वैल्यू

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बहुत पहले किसी मित्र ने एक कहानी लिख भेजी थी, प्रसिद्ध कवि गोलोकवासी ओम व्यास ने कविता में लिखा था कि पिता है तो सब कुछ है,पूरा संसार अपना है। संयोग से मेरे पूज्य पिताजी की पुण्य तिथि करीब है।स्मृतियों में,जेहन में उनकी याद, मित्र की कहानी,ओम व्यास की कविता आज ज्यादा छा गयी तो सोचा,क्यों न उसे ही दुहराया जाय-पिता है तो सारा जहान है अपना।
48 वर्षीय बड़े बाबू की नौकरी छूट गई थी। बॉस ने जलील करके ऑफिस से निकाल दिया था।पिछले बारह महीनों में तीसरी बार उसे नौकरी से निकाला गया था।रात हो चुकी थी लेकिन वह बाजार में एक पेड़ के नीचे रखी एक बेंच पर गुम सुम बैठा था। घर जाने का उसका जरा भी मन नही था। बेंच पर बैठा वह अपने दोस्तों को बार- बार फोन मिला रहा था और उनसे विनती कर रहा था, कि कहीं जगह खाली हो तो उसे बताएं। उसे तुरंत नौकरी की सख्त जरूरत थी। बड़ा बाबू कामचोर नही था मगर बढ़ते कम्प्यूटर के इस्तेमाल ने उसे कमजोर बना दिया था। हालांकि उसने कम्प्यूटर चलाना सीख लिया था मगर नये लड़कों जितना तेजी से कम्प्यूटर नहीं चला पाता था।इस कारण उसे कोई काम करने में ज्यादा समय लगता था।जिस नाते उसके बॉस उससे खिन्न हो जाते थे।


रात के दस बज गए।वह हताश और निराश सा घर पहुंचा।घर में प्रवेश करते ही बीबी चिल्लाई ” कहाँ थे इतनी रात तक ? किस औरत के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे थे? तुमको शर्म भी नहीं आती ?” वह रुकी नहीं। घर मे जवान बेटा और बेटी बैठे हैं। उनकी शादी की उम्र निकलती जा रही है। कब होश आयेगा तुम्हें ? अगर इनकी जिम्मेदारी नहीं निभानी थी तो पैदा ही क्यों किया था ? ” गोया वही नौ महीने अपने पेट मे रखे थे।बड़े बाबू के पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं था। वैसे भी वो पत्नी की रोज- रोज की चिक- चिक का जवाब देना छोड़ दिया था,जैसा कि प्रायः लोग करते हैं। अभी वह बाहर रखी टंकी से लगे नल से हाथ- मुँह धो ही रहा था कि बेटी दौड़ते हुए उसके पास आई और आते ही बोली “पापा आप मेरे लिए मोबाइल लाए क्या ?” बड़े बाबू ने बेटी को कोई जवाब नही दिया। बेटी फिर से बोली “पापा आप जवाब क्यों नहीं देते ? सुबह तो आप पक्का प्रोमिस करके गए थे कि आफिस से लौटते समय मेरे लिए मोबाइल लेकर ही आएंगे”। बड़े बाबू चुप ही रहे।
वह जवाब देता तो क्या देता ? बेटी के मोबाइल के लिए एडवांस मांगने पर ही तो बॉस ने उसे नौकरी से निकाल दिया था। बेटी अपने हाथ मे पकड़े पुराने फोन को दिखाते हुए बोली “आपको क्या लगता है पापा, मै झूठ बोल रही हूं ?


“ये देखो, मोबाइल सचमुच खराब हो गया है, ऑन करते ही हैंग हो जाता है “। बड़े बाबू चुप थे।
वह अपनी नौकरी जाने की खबर भी किसी को बताना नहीं चाहते थे,क्योंकि वह जानते थे कि अगर ये बात बताई तो बेटा, बेटी और पत्नी सभी उसके पीछे पड़ जाएंगे और उसे कोसने लगेंगें कि वह ढंग से काम नहीं करता। इसीलिए हर चौथे महीने नौकरी से निकाल दिया जाता है।
हाथ-मुँह धोने के बाद वह सीधा अपने कमरे मे गया,जहाँ बेड पर पसरी पत्नी मोबाइल चला रही थी। उसकी आँखे मोबाइल स्क्रीन पर थी और कान घर में हो रही बातों को सुन रहे थे। ज्यों ही बड़े बाबू ने कमरे मे कदम रखा, वह चिल्लाई “जवाब क्यों नही देते, बहरे हो गए हो क्या ?
बेटी को मोबाइल क्यों नहीं लाकर दिया ? “


वह दबी दबी आवाज मे बोले “पैसे हाथ में नहीं आये, पैसे मिलते ही ला दूंगा। पत्नी बोली “हाथ मे नहीं थे तो किसी से उधार ले लेते ? तुम जानते हो ना कि वह कम्पटीशन की तैयारी कर रही है। बिना मोबाइल के कैसे पढेगी ? बड़े बाबू के पास जवाब देने को बहुत कुछ था, मगर अब उसने चुप रहना सीख लिया था। वह रसोई मे चले आये, खुद ही खाना निकाला और खाने लगे।
बेटी 22 साल की हो चुकी थी और बेटा 24 साल का हो चुका था। दोनों पढाई मे कम और सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताते थे। यद्यपि वह जानते थे कि कम्पटीशन में निकालने का तो सवाल ही नहीं था,फिर भी घर का मुखिया होने के नाते उसे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन तो करना ही था।
अभी बड़े बाबू ने खाना खत्म नहीं किया था कि उसका बेटा बाहर से गाना गुनगुनाते हुए सीधा रसोई में आया। मगर पिता को वहाँ खाना खाते देखकर अपने कमरे मे चला गया। बड़े बाबू ने नोटिस किया कि उसके कदम बहक रहे थे। वह जरूर यार दोस्तों के साथ बैठ कर पीकर आया था।


शुरू -शुरू मे जब बेटा पीकर घर आता था। तब उसे बड़े बाबू छुपाया करते थे,कि कोई और न जान जाय। लेकिन जब पूरे समाज मे थू -थू होने लगी तो बड़े बाबू उसे बहुत डांटा करते थे। मगर एक दिन बेटा सामने बोल दिया कि आप पैसे नहीं देते पीने के लिए। बड़े बाबू ने बेटे को थप्पड़ लगाना चाहा था लेकिन बेटे ने उनका हाथ पकड़ लिया था और गुस्से मे उसे आँख दिखाने लगा था। अब वे बेवश थे,लाचार थे। उस दिन के बाद से बड़े बाबू ने बेटे से कुछ भी कहना छोड़ दिया था।
वह खाना खाकर वापस कमरे में आया तब पत्नी की किच- किच फिर से शुरू हो गई। मगर वह चुपचाप करवट बदल कर सोने का बहाना करने लगा। यह अलग बात थी कि नींद उससे कोसों दूर थी।सुबह जल्दी से उठकर वह काम की तलाश मे निकल गया। वह जानता था बिना काम किये सब कुछ बिखर जाएगा। घर खर्च चलाना था, बच्चों की पढाई की जरूरतें पूरी करनी थीं,उनकी शादियां भी करनी थी।शाम तक वह भूखा प्यासा दफ्तरों के चक्कर लगाता रहा। खाना नहीं खाने से शरीर की ‘शुगर लो’ हो गई थी। शरीर मे सुन्नता सी आने लगी थी,लेकिन वह सोचते हुए चले जा रहे थे। पता नहीं कब चलते- चलते वह फुटपाथ से मुख्य सड़क पर आ गये थे। तेज दौड़ती हुई एक गाड़ी आई और उनके ऊपर से निकल गई। उनके शरीर के साथ-साथ उसका सिर भी बुरी तरह कुचल गया था। बड़े बाबू को तड़पने का भी मौका नहीं मिला और सड़क पर ही उनके प्राण पखेरू उड़ गए। बड़े बाबू के बेटे-बेटी और पत्नी ने रोते- बिलखते हुए उनका अंतिम संस्कार किया। उनके जाने के बाद घर का माहौल पूरी तरह बदल गया था। जिन लोगों से पैसे उधार ले रखे थे,वे रोज घर का चक्कर लगाने लगे थे।रिश्तेदारों और दोस्तों ने फोन उठाने बन्द कर दिये थे। घर का वाईफाई का कनेक्शन कट चुका था और घर मे ‘नेट’ चलना बंद हो गया था। बीबी और बच्चों का समय भारी बीतने लगा। बेटी और बेटा अब खाने मे कमी नहीं निकालते थे। जो भी मिल जाता चुपचाप खाकर सो जाते थे।


बेटे की आजादी खत्म हो गई थी। अब वह एक कपड़े की दुकान में महज 7 हजार रुपये महीने की नौकरी करने लगा था। शराब पीनी भी छोड़ दी थी,लेकिन लीवर की दवा शुरू हो गयी थी। बेटी भी एक प्राइवेट स्कूल मे 5000 हजार रुपये महीने की पगार पर नौकरी करने लगी। पत्नी के लिए सब कुछ बदल चुका था। माथे का सिंदूर मिटते ही उससे सजने -संवरने का अधिकार जैसे छिन सा गया था। अब वह घंटो शीशे के सामने खड़ी नही होती थी। जिस पति को देखते ही किच -किच शुरू कर दिया करती थी, अब उसी पति की आवाज सुनने को उसके कान तरस गए थे। पति जब जिंदा था वह निश्चिंत होकर सोया करती थी। मगर उसके गुजरने के बाद एक छोटी सी आवाज भी उसे डरा देती थी। रात भर नींद के लिए तरसती रहती थी।
उसके गुजरने के बाद पूरे परिवार को पता चल गया था कि वो उनके लिए बहुत कुछ था। वो सुख- चैन था,खुशियां था। वो नींद था,सकून था। वो रोटी था, कपड़ा और मकान था। वो धरती था,अम्बर था,वो पूरा बाजार था, वो ख्वाहिशों का आधार था। मगर उसकी “वैल्यू” उसके जीते जी उन्हें पता नहीं थी।

डॉ.ओ.पी.चौधरी
संरक्षक,अवधी खबर; समन्वयक,अवध परिषद उत्तर प्रदेश।


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