सोमवती अमावस्या : पितृदोष नाशक चंद्रमा मनसो जातो

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अंबेडकरनगर।भारतीय संस्कृति में अमावस्या तिथि का अत्यंत विशेष महत्त्व है। जब अमावस्या तिथि सोमवार के दिन आती है, तब उसे ‘सोमवती अमावस्या’ कहा जाता है। यह तिथि धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत फलदायी मानी जाती है। विशेष रूप से पितृ तर्पण, स्नान, दान और व्रत के लिए यह दिन अत्यंत पुण्यकारी होता है। इसके पौराणिक प्रसंग, धार्मिक विधान और लोक विश्वासों में यह तिथि विशेष स्थान रखती है।इस वर्ष विक्रम संवत् 2082 तदनुसार ग्रेगोरियन कैलेंडर 2025 में सोमवती अमावस्या का शुभ संयोग 26 मई को बन रहा है।इसी तिथि को वट सावित्री का भी पर्व मनाया जाएगा।जिससे इसके माहात्म्य में और भी वृद्धि का योग बनता है।


हिंदू पंचांग के अनुसार, अमावस्या उस दिन को कहते हैं जब चंद्रमा लुप्त हो जाता है, अर्थात् सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में स्थित रहते हैं। जब यह तिथि सोमवार के दिन आती है, तब इसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है। चंद्रमा का संबंध मन से और सोमवार का संबंध चंद्रदेव से होता है, अतः इस दिन विशेष मानसिक शांति और आत्मिक पवित्रता के लिए व्रत का विधान है।


सोमवती अमावस्या से जुड़े अनेक पौराणिक प्रसंग हैं। महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को सोमवती अमावस्या व्रत का वर्णन करते हुए बताया था कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और पितरों के निमित्त तर्पण करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है।
“अमावास्यां तु यः स्नात्वा सोमवारे विशेषतः।
पितृणां तर्पणं कुर्याद् दानं च विधिवत्ततः॥”
(महाभारत, अनुशासन पर्व)
इस श्लोक के अनुसार सोमवती अमावस्या के दिन पवित्र स्नान, तर्पण और दान करने से पितरों को तृप्ति मिलती है और वंशजों को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
इस दिन विशेष रूप से पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति व्रत और तर्पण करके अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु प्रार्थना करते हैं। मान्यता है कि तर्पण से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।शास्त्रों में उल्लेख है कि –
“तर्पणेन पितॄन् तुष्येत् पावयेत् कुलमात्मनः।
प्रीणयेत् देवतागणान् सोमवत्यां विशुद्धधीः॥”
इस दिन प्रयाग, हरिद्वार, गंगासागर, नासिक, पुष्कर, कुरुक्षेत्र आदि तीर्थों में स्नान का विशेष महत्त्व है। गंगा में स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है।गंगे तव दर्शनात मुक्ति: को चरितार्थ करता हुआ कलुषविनाशक नदियों के जल में स्नान को विशेष फलदाई माना जाता है।इसकी पुष्टि निम्न श्लोक से भी होती है –


“गंगे च यमुने चैव गोदावऱि सरस्वति।
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु॥”
यह मंत्र गंगा स्नान से पहले उच्चारित किया जाता है, जिससे सभी पवित्र नदियों का आह्वान होता है।
सोमवती अमावस्या के दिन विवाहित स्त्रियाँ पीपल वृक्ष की परिक्रमा कर अपने पति की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं। यह परंपरा सती अनसूया और सावित्री के व्रत से प्रेरित है।जिसके माहात्म्य वर्णन में पीपल के वृक्ष को साक्षात् त्रिदेवों का स्वरूप माना गया है और कहा भी गया है –


“अश्वत्थो भगवान् वृक्षो मूलतो ब्रह्मरूपधृक्।
मध्यतो विष्णुरूपश्च शिवरूपश्च शाकिनः॥”
इस श्लोक के अनुसार पीपल वृक्ष को ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का प्रतीक माना गया है।
सोमवती अमावस्या व्रत विधि के अनुसार सूर्योदय से पूर्व उठकर शुद्ध जल से स्नान करें,पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करना श्रेष्ठ माना गया है,स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य दें और “ॐ नमः शिवाय” अथवा “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें,कुशा और तिल से पितरों को तर्पण करें,ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दें,दिन भर व्रत रखकर संध्या समय व्रत कथा पढ़ना चाहिए,रात्रि को भगवान शिव का पूजन कर आरती करें।
इस दिन व्रत कथा का श्रवण करना अनिवार्य माना गया है। कथा में एक ब्राह्मण कन्या और उसके पति के जीवन में वटवृक्ष की परिक्रमा और व्रत से उत्पन्न सुख-शांति का वर्णन मिलता है।


सोमवती अमावस्या के दिन लोक परंपराएं और मान्यताएँ अवश्य मनोयोग पूर्वक अनुपलित करना चाहिए।जिस निमित्त विवाहित स्त्रियाँ इस दिन वटवृक्ष की 108 परिक्रमाएँ कर रक्षा सूत्र बाँधती हैं। ऐसा करने से पति की आयु लंबी होती है।सोमवती अमावस्या को चंद्रमा और सूर्य की ऊर्जा विशेष रूप से प्रभावशाली मानी जाती है। ध्यान और योगाभ्यास करने से आत्मबल की वृद्धि होती है।इसलिए आसन,प्राणायाम और योग की विभिन्न मुद्राओं का अभ्यास शरीर को निरोग बनाने में विशेष फलदाई माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से सात्विक आहार और शुद्ध वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए। क्रोध, द्वेष, असत्य भाषण और मांस-मद्य से दूर रहना चाहिए।
सोमवती अमावस्या के आध्यात्मिक लाभ और फल यद्यपि अनगिनत हैं तथापि पूर्व जन्मों के पापों का नाश,पितरों की कृपा से जीवन में समृद्धि,मानसिक शांति और आत्मिक शुद्धि,कुल की उन्नति और ऋणमुक्ति,पति की दीर्घायु और संतान सुख आदि को केंद्रित करके सोमवती अमावस्या का व्रत पूर्वक अनुष्ठान करना कभी भी व्यर्थ नहीं होता है,अवश्य मनोवांछित फल प्रदान करता है।


महाभारत, पुराणों एवं अन्य ग्रंथों में उल्लेख
महाभारत के अनुशासन पर्व के अतिरिक्त वायु पुराण, पद्म पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी सोमवती अमावस्या के महत्त्व का उल्लेख मिलता है।
“सोमवारे अमावास्यां स्नानं दानं विशेषतः।
ब्रह्महत्यादिकं पापं नाशयेत् नात्र संशयः॥”
(वायु पुराण)
इस श्लोक में सोमवती अमावस्या को ब्रह्महत्या जैसे महापापों को भी नष्ट करनेवाला दिन कहा गया है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आधुनिक जीवन की भागदौड़ में आत्मिक शांति और पितृ ऋण से मुक्ति के लिए सोमवती अमावस्या व्रत अत्यंत उपयोगी है। यह न केवल एक धार्मिक क्रिया है, बल्कि पारिवारिक एकता, संस्कारों की पुनःस्थापना और आध्यात्मिक जागरूकता का साधन भी है।


सोमवती अमावस्या एक अत्यंत पुण्यकारी तिथि है, जिसका पालन करने से जीवन में शांति, संतुलन और समृद्धि आती है। यह न केवल पितृ ऋण से मुक्ति का मार्ग है, अपितु यह आत्मशुद्धि और मोक्ष की ओर भी प्रेरित करती है।तभी तो शास्त्रों में इसके माहात्म्य का वर्णन करते हुए लिखा गया है –
पितॄन् तर्पयित्वा यः कर्मणा धर्ममाचरेत्।
स लोके सुखमाप्नोति परत्र च महाफलम्॥

  • विद्यावाचस्पति उदयराज मिश्र
    “शिक्षाविद एवं साहित्यकार”

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