मनरेगा में महाघोटाला: अंबेडकरनगर के सभी विकास खंडों में……..

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एपीओ-प्रधान गठजोड़ से उड़ाया जा रहा सरकारी धन

मास्टर रोल में सैकड़ों मजदूर, मौके पर 5-10; जांच की उठी मांग

अंबेडकरनगर।
जनपद अंबेडकरनगर में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का मामला उजागर हुआ है। जिले के सभी विकास खंडों में एपीओ (सहायक परियोजना अधिकारी) और ग्राम प्रधानों की सांठगांठ से सरकारी धन की खुली लूट जारी है।

कागजों पर मजदूर, ज़मीनी हकीकत कुछ और
सूत्रों के अनुसार, मास्टर रोल में सैकड़ों मजदूरों के नाम दर्ज किए गए हैं, लेकिन जब मौके पर जांच की जाती है तो 5 से 10 मजदूर भी कार्यरत नहीं मिलते। यह सवाल उठाता है कि जब काम करने वाले मौजूद नहीं हैं, तो भुगतान किसको और कैसे हो रहा है?

ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि एक ही मजदूर की तस्वीर को कई बार इस्तेमाल कर फर्जी उपस्थिति दर्ज की जा रही है। इसके बाद मजदूरी की राशि निकालकर सरकारी खजाने को चूना लगाया जा रहा है।

“लूट सको तो लूट लो, अंतकाल पछताओगे”
गांव-गांव में चर्चाएं जोरों पर हैं कि प्रधानों का कार्यकाल समाप्ति की ओर है, और उसी जल्दबाजी में मनरेगा की राशि का जमकर दुरुपयोग हो रहा है। ग्रामीण कह रहे हैं कि इस समय यह कहावत सटीक बैठ रही है – “लूट सको तो लूट लो, अंतकाल पछताओगे।”

डीसी मनरेगा की चुप्पी पर भी सवाल
जिले में बैठे जिम्मेदार अधिकारी—खासकर डीसी मनरेगा—इस लूट को देखकर भी आंखें मूंदे बैठे हैं। जबकि लगातार मीडिया में साक्ष्यों के साथ खबरें प्रकाशित हो रही हैं, लेकिन कार्रवाई का नाम नहीं लिया जा रहा।

रोजगार मांगने पर मिलता है टका-सा जवाब
गांव के कई बेरोजगारों ने बताया कि जब वे मनरेगा के तहत काम मांगते हैं, तो उन्हें यह कहकर टाल दिया जाता है कि “फिलहाल कोई काम नहीं है।” लेकिन बाद में पता चलता है कि रिकॉर्ड में उन्हीं के नाम पर काम दर्शा दिया गया और मजदूरी की रकम भी निकाल ली गई।

जनता की मांग: हो निष्पक्ष जांच और कठोर कार्रवाई
ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों ने मांग की है कि जिलाधिकारी स्वयं संज्ञान लेकर विकास खंडों में संचालित मनरेगा कार्यों की जांच कराएं। दोषियों के विरुद्ध कठोर कानूनी कार्रवाई हो ताकि सरकारी योजनाओं में लूट-खसोट पर अंकुश लगाया जा सके।

> सरकार की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा में इस तरह का भ्रष्टाचार न केवल योजनाओं की विश्वसनीयता को चोट पहुंचाता है, बल्कि गरीब मजदूरों के हक को भी मारता है। अब देखना होगा कि प्रशासन कब तक आंखें मूंदे बैठा रहेगा।


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