
अवधी खबर संवाददाता
अंबेडकरनगर।
नगपुर जलालपुर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मरीजों को रात के समय दवा और इलाज के लिए गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। यहाँ की व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि सामान्य डिलीवरी से लेकर अन्य स्वास्थ्य समस्याओं तक, रात में मरीजों को न तो दवा दी जा रही है और न ही उचित इलाज मुहैया कराया जा रहा है। मरीजों और उनके परिजनों को मजबूरन बाहर के मेडिकल स्टोर से महंगी दवाइयाँ खरीदनी पड़ रही हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर भारी बोझ पड़ रहा है।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नगपुर जलालपुर में रात के समय दवा वितरण की व्यवस्था पूरी तरह ठप है। केंद्र के अधीक्षक जयप्रकाश के अनुसार, “शाम को दवा की क्लोजिंग कर दी जाती है, और रात में किसी भी मरीज को दवा नहीं दी जाती।” यह नियम इमरजेंसी को छोड़कर सभी मरीजों पर लागू होता है, चाहे उनकी तबीयत कितनी भी खराब क्यों न हो। सामान्य डिलीवरी के मामलों में भी मरीजों को रात में दवा देने से इनकार कर दिया जाता है। अधीक्षक का कहना है कि दवा के लिए सुबह 10 बजे के बाद ही आना होगा। ऐसे में सवाल उठता है कि यदि रात में किसी मरीज की हालत बिगड़ जाए, तो वह इलाज के अभाव में कहाँ जाए?
डिलीवरी मरीजों को सिर्फ “लॉलीपॉप”-
सामान्य डिलीवरी के लिए यहाँ आने वाली महिलाओं और उनके परिजनों की परेशानी और भी गंभीर है। अस्पताल के स्टाफ नर्स की देखरेख में तो डिलीवरी नार्मल रूप से सकुशल करवाई जाती है परंतु के बाद मरीजों को केवल पैरासिटामोल और एंटासिड जैसी बुनियादी दवाएँ दी जाती हैं, जो गंभीर प्रसवोत्तर देखभाल के लिए पर्याप्त नहीं हैं। परिजनों का आरोप है कि स्टाफ उन्हें “बेवकूफ” बनाने का काम कर रहा है। ड्यूटी पर तैनात फार्मासिस्ट मनोज यादव का कहना है, “हम रात में केवल इमरजेंसी की दवा दे सकते हैं। नॉर्मल डिलीवरी के मामले में रात में दवा नहीं दी जाएगी।” कई बार मरीजों की सिफारिश करने पर भी उन्हें मामूली दवाएँ देकर टरका दिया जाता है।
बाहर से दवा खरीदने की मजबूरी-
रात में दवा न मिलने के कारण मरीजों को मजबूरन बाहर के मेडिकल स्टोर से दवाएँ खरीदनी पड़ती हैं। ये दवाएँ अक्सर महंगे दामों पर मिलती हैं, जिससे मरीजों की जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। एक गरीब मरीज के लिए यह स्थिति और भी कष्टदायक है। इलाज के लिए कर्ज लेना या जुगाड़ करना उनकी मजबूरी बन जाता है, जबकि अस्पताल में ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टरों और फार्मासिस्टों की सेहत पर इसका कोई असर नहीं पड़ता। मरीज के परिजन के बीच यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि, “हमारी गाढ़ी कमाई दवा खरीदने में चली जाती है, फिर परिवार का पालन-पोषण कैसे होगा?”
सरकारी दावों पर सवाल
सरकार का दावा है कि सभी सरकारी अस्पतालों में मरीजों को निःशुल्क इलाज और दवाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं। लेकिन नगपुर जलालपुर का यह स्वास्थ्य केंद्र इस दावे की पोल खोलता नजर आता है। यहाँ मरीजों को न सिर्फ दवा से वंचित रखा जा रहा है, बल्कि उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर बाहर के मेडिकल स्टोर संचालकों को लाभ पहुँचाया जा रहा है। इससे यह संदेह गहराता है कि क्या अस्पताल को दी जाने वाली दवाएँ कहीं ब्लैक में बेची जा रही हैं? यदि ऐसा नहीं है, तो दवाएँ मरीजों तक क्यों नहीं पहुँच रही हैं? यह सवाल अनुत्तरित बना हुआ है।
“अंधेर नगरी, चौपट राजा”-
स्वास्थ्य केंद्र की इस लचर व्यवस्था को देखकर “अंधेर नगरी, चौपट राजा” की कहावत चरितार्थ होती है। मरीजों की जान से खिलवाड़ करने वाली यह स्थिति न सिर्फ चिंताजनक है, बल्कि प्रशासनिक उदासीनता को भी उजागर करती है। यहाँ के स्टाफ की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं, लेकिन इसका कोई समाधान नजर नहीं आता। मरीजों के लिए यह स्वास्थ्य केंद्र उम्मीद की जगह निराशा का केंद्र बन गया है।
निष्कर्ष-
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नगपुर जलालपुर में रात के समय दवा और इलाज की कमी एक गंभीर समस्या है, जो मरीजों के जीवन को खतरे में डाल रही है। सरकार और स्वास्थ्य विभाग को इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप कर व्यवस्था को दुरुस्त करना चाहिए। क्या मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाने वाली इस व्यवस्था पर कोई कार्रवाई होगी, या यह हालात यूँ ही बने रहेंगे? यह समय बताएगा। तब तक मरीजों को सावधान रहने और अपनी जेब गर्म करने की सलाह ही दी जा सकती है।




