अवधी खबर संवाददाता
अंबेडकरनगर।
सोशल मीडिया पर एक ट्वीट ने ट्विटर अकाउंट संचालक वरुण शुक्ला की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। जलालपुर तहसीलदार पद्मेश श्रीवास्तव ने उनके खिलाफ कोतवाली जलालपुर में मुकदमा दर्ज कराया है। यह मामला उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास प्राधिकरण (युपिडा) के अंतर्गत औद्योगिक गलियारे की जमीन के बैनामे से जुड़ा है, जिसमें वरुण शुक्ला ने एडीएम अंबेडकर नगर पर चार लाख रुपये घूस मांगने का गंभीर आरोप लगाया था। इस ट्वीट को आधार बनाते हुए तहसीलदार ने इसे निराधार और मानहानिकारक बताकर कानूनी कार्रवाई की है।
क्या है पूरा मामला?
वरुण शुक्ला ने अपने ट्विटर अकाउंट से ट्वीट कर दावा किया था कि जलालपुर तहसीलदार ने एक रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि किसान के खेत में सड़क मौजूद है, लेकिन इसके बावजूद एडीएम अंबेडकर नगर बैनामे के लिए चार लाख रुपये की घूस मांग रहे हैं और रजिस्ट्री नहीं कर रहे। इस ट्वीट के वायरल होने के बाद मामला गरमा गया। तहसीलदार पद्मेश श्रीवास्तव ने इसे पूरी तरह से आधारहीन करार देते हुए जलालपुर थाने में तहरीर दी। इसके आधार पर वरुण शुक्ला के खिलाफ बीएनएस की धारा 353(2) (सार्वजनिक सेवक के खिलाफ झूठी सूचना फैलाना) के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया।
तहसीलदार का पक्ष
तहसीलदार पद्मेश श्रीवास्तव ने इस मामले में अपनी सफाई देते हुए बताया कि औद्योगिक गलियारे के तहत ग्राम सभा अजमलपुर में जमीन का बैनामा होना था। किसान ने आपत्ति जताई कि उसका खेत पहले से निर्मित सड़क से सटा हुआ है, इसलिए सर्किल रेट से अधिक दर पर बैनामा होना चाहिए। इस संबंध में तहसीलदार ने युपिडा के नोडल अधिकारी को पत्र लिखकर स्थिति से अवगत कराया था। उन्होंने कहा, “वरुण शुक्ला का एडीएम पर घूस मांगने का आरोप पूरी तरह निराधार है। किसी पर बेबुनियाद इल्जाम लगाना न्यायसंगत नहीं है, इसलिए मैंने कानूनी कदम उठाया।”
_ट्वीट से उपजा विवाद_
सोशल मीडिया पर तेजी से फैलने वाली इस खबर ने प्रशासनिक हलकों में हलचल मचा दी। तहसीलदार का कहना है कि ऐसे निराधार आरोप न केवल उनकी छवि को धूमिल करते हैं, बल्कि प्रशासनिक प्रक्रिया पर भी सवाल उठाते हैं। दूसरी ओर, वरुण शुक्ला के ट्वीट ने स्थानीय लोगों के बीच चर्चा का विषय बना दिया है। अब यह मामला कानूनी दायरे में पहुंच गया है, जहां जांच के बाद सच सामने आएगा।
आगे की कार्रवाई
कोतवाली जलालपुर में दर्ज मुकदमे के बाद पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस प्रकरण में वरुण शुक्ला अपना पक्ष कैसे रखते हैं और क्या सबूत पेश करते हैं। फिलहाल, यह घटना सोशल मीडिया के दुरुपयोग और प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल उठाने वाली बन गई है।
इस खबर ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सोशल मीडिया पर बिना सोचे-समझे की गई टिप्पणी कितनी महंगी पड़ सकती है। अब सबकी नजरें इस मामले के अगले मोड़ पर टिकी हैं।





