क्षीण हो रहे जो नैतिक मूल्य,उन्हें हमें बचाना होगा, विलुप्त हो रहे जो संस्कार,उनको फिर से लाना होगा।
खत्म हो रहा जो दयाभाव,उसे हमें जगाना होगा, न्यून हो रहा जो
भाई-चारा,उसे पुन: फैलाना होगा।
पतित हो रही जो इंसानियत,उसका पुनरुत्थान कराना होगा, मत झगड़ो जाति-धर्म में,ये बात सभी को बताना होगा। उमड़ रहा जो मन का भाव,उसे हमें सजाना होगा,
घुमड़ रहा है जो शब्द प्रवाह,उसे हमें बरसाना होगा। रुचिकर रचना रचकर हमको,भरे समाज में गाना होगा, फैले सौहार्द जिससे,वो संदेश हमें सुनाना होगा। जिस बात से बहुसंख्यक लाभान्वित हों,वो मुद्दा हमें उठाना होगा, सुख,शांति,सुकून मिले जिससे,वह कवि धर्म कवि को निभाना होगा।।
डॉ० अजय वर्मा ‘अजेय’





