 
									मां ! शादी ? इस सुलगती दुनिया में
हक़ है इस दुनिया में किसी को लाने का
टूटन, चुभन, दर्द के सिवा क्या है यहां
हताशा,निराशा,अंधकारमय भविष्य
मैं क्यों करूँ शादी, क्यों संजोऊँ ये सपने,
जब दुनिया के रंग स्याह ,और बेगाने हैं अपने
जहाँ हर मोड़ पर डर की परछाइयाँ चलती,
जहाँ हर साँस में बेबसी की आहें बहती।
क्यों लाऊँ इस दुनिया में एक मासूम कली,
जिसकी हँसी पर भी हो पहरेदारी गली-गली?
जहाँ बेटी का जन्म ही एक प्रश्न बन जाए,
जहाँ लोरी से पहले चिंता ही खा आए।
क्या दूँगी बच्चे को—अंधेरों का साया,
भय की कहानियाँ, छल का सरमाया ?
क्या दिखाऊँ उसे—बिखरे हुए सपने,
रिश्तों की बुनियाद में झूठे अपने ?
हत्या, बलात्कार, लूट और रिश्वत,
क्या यही हैं उसकी किस्मत की किस्मत?
बेरोज़गारी, भूख, और टूटी उम्मीदें,
क्या यही हैं उसके कल की तस्वीरें?
जहाँ वतन पर मिटने वालों के नौनिहाल,
रहें बेसहारे, उदास, बेहाल।
भूख से लड़ते, डर से सिहरते,
ख़्वाब भी बिखरे,अरमान भी बिखरते।
जहाँ इंसाफ़ भी बिकता हो बाज़ारों में,
जहाँ सच दबा हो गहरी दीवारों में।
जहाँ मज़लूम की चीखें गूंजती रहें,
और सत्ता के खेल पर क्या ही कहें
कह दो मुझे, क्या कोई रोशनी बची है,
क्या किसी कोने में कोई आशा सजी है ?
क्या दुनिया कभी माँ की गोद जैसी होगी,
जहाँ हर बच्ची निर्भय और स्वतंत्र होगी ?
मैं पूछती हूँ—क्या जवाब है इसका?
क्या बदलेगा कुछ,या ख़्वाब रहेगा सिसकता ?
जब तक ये दुनिया यूँ ही सुलगती रहेगी,
एक बेटी का प्रश्न अनुत्तरित ही रहा है,
अनुत्तरित ही रहेगा……..
डॉ करुणा वर्मा
प्राचार्य आदर्श कन्या तुम कॉलेज टांडा अंबेडकरनगर





