कटरा बाजार पुलिस पर कार्रवाई न करने का आरोप,एसपी से गुहार
कटरा बाजार, गोण्डा। कटरा बाजार थाना क्षेत्र अन्तर्गत एक दलित किशोरी के साथ हुई बर्बरता ने जिले भर में सनसनी फैला दी है। अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाले पीड़ित परिवार द्वारा लगाए गए आरोपों के अनुसार गांव के दो दबंगों ने 15 वर्षीय लड़की के साथ न केवल जातिसूचक शब्दों का प्रयोग किया,बल्कि उसे घर में घुसकर बुरी तरह से मारा पीटा। इस घटना के बाद स्थानीय पुलिस की निष्क्रियता और लापरवाही पर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
घटना 22 अप्रैल 2025 की सुबह की है। जब पीड़ित नकछेद पुत्र मेहीलाल निवासी ग्राम पड़हन पुरवा, मौजा देवा पसिया थाना कटरा बाजार गोण्डा अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ खेत में गेहूं की कटाई करने गए थे। उसी दौरान उसकी 15 वर्षीय बेटी कोमल जो घर पर अकेली थी कि तभी पता चला कि गांव के ही अजीज पुत्र सलारू और टाइगर पुत्र जहरुद्दीन अपनी बकरी से मक्का की फसल चरवा रहे हैं। जब किशोरी ने इसका विरोध किया तो आरोपियों ने क्रोध में आकर उसे जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया और गंदी-गंदी गालियां देते हुए जान से मारने के लिए दौड़ाया। किशोरी जब अपनी जान बचाने के लिए घर के अंदर भागी,तब आरोपियों ने घर में घुसकर उसे लात-घूंसों, थप्पड़ों और डंडों से बेरहमी से पीटा। किशोरी की चीख-पुकार सुनकर गांव के लोग मौके पर पहुंचे और किसी तरह बीच-बचाव कर उसकी जान बचाई।
जब यह खबर खेत में काम कर रहे पिता नकछेद को मिली तो वह दौड़कर घर पहुंचे और बेटी से पूरी घटना की जानकारी ली। घटना की शिकायत तत्काल कटरा बाजार थाने में की गई, परंतु पुलिस ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की। इससे हताश होकर पीड़ित ने अब पुलिस अधीक्षक गोंडा विनीत जयसवाल को लिखित प्रार्थना पत्र देकर न्याय की गुहार लगाई है। इस घटना ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या अनुसूचित जाति से जुड़े नागरिकों के साथ न्याय पाने की राह इतनी कठिन हो गई है? जहां एक ओर उत्तर प्रदेश सरकार दलितों की सुरक्षा और सम्मान के लिए योजनाएं चला रही है, वहीं जमीनी हकीकत में पुलिस का इस प्रकार निष्क्रिय रहना चिंता का विषय है।
अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अंतर्गत किसी व्यक्ति को जातिसूचक शब्द कहना, अपमानित करना या मारपीट करना गंभीर अपराध है। इस मामले में स्पष्ट रूप से पीड़िता के साथ जातिगत हिंसा हुई है, ऐसे में एफआईआर दर्ज कर तत्काल कार्रवाई किया जाना चाहिए था। इस घटना के बाद कई सामाजिक संगठनों और स्थानीय लोगों ने पुलिस की निष्क्रियता की आलोचना की है और जल्द से जल्द दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की मांग की है। यदि पुलिस समय रहते कार्रवाई नहीं करती है तो आंदोलन की चेतावनी भी दी जा रही है।
यह मामला न केवल एक दलित परिवार की व्यथा है, बल्कि यह शासन-प्रशासन की संवेदनहीनता का प्रतीक भी बनता जा रहा है। सवाल यही है कि क्या एक गरीब दलित की बेटी को न्याय मिलेगा? क्या दबंगों की गुंडई के आगे कानून बौना साबित होगा? और सबसे अहम सवाल यह है कि क्या गोंडा पुलिस अपनी छवि को सुधारने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाएगी?





