स्वास्थ्य मंत्री-सांसदों की जानकारी में भ्रष्टाचार! अंबेडकर नगर में 1 वर्ष बाद भी कोई कार्रवाई नहीं,2027 चुनाव पर साया मंडराया
अवधी खबर संवाददाता
अंबेडकर नगर।भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार का एक और बड़ा आरोप लगा है। दक्षिण भारत की जीवीके ईएमआरआई कंपनी (जिसे स्थानीय स्तर पर जीबीके के नाम से जाना जाता है) द्वारा संचालित 102-108 एंबुलेंस सेवाओं में फर्जी केसों का खेल चल रहा है, जिससे सरकारी खजाना करोड़ों रुपये लूटा जा रहा है। यह मामला स्वास्थ्य मंत्री, विधायक और सांसदों की जानकारी में है, लेकिन एक साल बीतने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
स्थानीय मीडिया की पड़ताल और जिला अधिकारियों की जांच में यह घोटाला सामने आया था, जो अब 2027 विधानसभा चुनावों को प्रभावित करने की कगार पर है। क्या यह योगी आदित्यनाथ सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का मजाक उड़ा रहा है?
फर्जी केस खुलेआम: 30 -35-40 केसों का दबाव,
2024 में मीडिया जांच और जिला प्रशासन की प्रारंभिक जांच ने पर्दा उठाया। जीवीके कंपनी के सुपरवाइजर एंबुलेंस ड्राइवरों और इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन (EMT) पर दबाव डालते हैं कि वे रोजाना 25-30 फर्जी केस दर्ज करें, वरना नौकरी से बर्खास्तगी की धमकी। एक ही मोबाइल नंबर से फर्जी फोन काल 30-30 बार कर फर्जी केश किया जाता है, पुराने मरीजों की फोटोज अपलोड कर ली जाती हैं, और बिना मरीज के एंबुलेंस दौड़ाई जाती हैं। उत्तर प्रदेश सरकार जीवीके को प्रत्येक केस पर करीब 3,500 रुपये देती है। 108 एंबुलेंस को मासिक 1.34 लाख रुपये, लेकिन न्यूनतम 30 केस अनिवार्य। अतिरिक्त केसों पर बोनस मिलता है, जिससे कुछ एंबुलेंस का मासिक बिल 3 लाख तक पहुंच जाता है। अंबेडकर नगर जैसे जिलों में यह फर्जीवाड़ा वर्षों से चल रहा है, जिससे करोड़ों का सरकारी फंड डकार लिया गया। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) और अपर चिकित्सा अधिकारी ने जांच रिपोर्ट शासन स्तर पर भेज दी थी, लेकिन फाइल धूल खा रही है। एक महीने तक मीडिया ने लगातार कवरेज किया, जांच चली, लेकिन नतीजा सिफर!
फर्जी केशों का दबाव मानसिक तनाव से नशे की लत:
कर्मचारियों की बेबसी कंपनी का दबाव इतना है कि सुबह से शाम तक फर्जी केस भरे जाएं। ड्राइवर और ईएमटी मानसिक रूप से टूट रहे हैं, कई नशे के आदी हो चुके हैं। इतने दबाव में सच्चे मरीजों की जान जोखिम में पड़ रही है, एक प्रभावित कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया। यह न केवल स्वास्थ्य सेवाओं को कमजोर कर रहा है, बल्कि ग्रामीण इलाकों में असली इमरजेंसी के समय एंबुलेंस की कमी पैदा कर रहा है।
ऊपरी स्तर पर सेटिंग: डॉक्टरों की मोहरें तैयार रखींविश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, जिला अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों के वेरिफिकेशन अधिकारी-डॉक्टरों की मोहरें पहले से बनवा ली जाती हैं। एक जगह बैठकर सारे फर्जी केसों पर साइन और स्टैंप हो जाते हैं। सीएमओ से लेकर चिकित्सा अधीक्षक, नोडल अफसर तक सबकी सहमति। इमरजेंसी या ओपीडी वॉर्ड में कोई वास्तविक जांच नहीं। क्या यह सिस्टमैटिक लूट है? स्वास्थ्य मंत्री से लेकर स्थानीय सांसद-विधायक तक मामला पहुंच चुका है, लेकिन चुप्पी साधे हैं।
सरकार की चुप्पी: 2027 चुनाव पर खतरा? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार को यह जानकारी है या जानबूझकर अनदेखी? पिछले साल की जांच में सत्यापन हो चुका, फिर जीवीके पर कार्रवाई क्यों नहीं? क्या गाज गिरेगी तो सिर्फ निचले कर्मचारियों या ड्राइवरों पर? यह सवाल जिले भर में चर्चा का विषय है। भ्रष्टाचार की यह बेलगाम लूट न केवल सरकार की छवि को तार-तार कर रही है, बल्कि 2027 के चुनावों में वोट बैंक को हिला सकती है। ग्रामीण मतदाता, जो स्वास्थ्य सेवाओं पर निर्भर हैं, नाराज हैं।
कार्रवाई की मांग तेज
स्थानीय पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि शासन स्तर पर फंसी फाइल को तुरंत सक्रिय किया जाए। जीवीके कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो, जिम्मेदार अधिकारियों पर सख्ती हो।





